नव सत्र सुधामय फिर आया
प्रफुल्ल मुदित मन भावन दिन लाया
मनस पटल पर अंकित छवि कॉलेज की
सजीव देखने का दिन आया
व्याकुलता के पल काट काट पहुंचा मैं कॉलेज के द्वार
प्रथम दृश्य मैं दिख गया मुझे
कुछ सहपाठियों का होता विचित्र सत्कार
देख मुझे खुश हुए सिनिअर
मिल जाए जैसे माँ को बच्चे का उपहार
मिला आदेश;
कर दो उस कन्या से प्यार का इजहार
खुश हुआ मेरा मन, इच्छा वर्षों की
होने को थी साकार
किंतुं शारीर मेरा था कम्पित
कर ना दे कहीं कन्या प्रतिकार
सहज भाव मैं गया निकट
और हो गया मेरा जीर्णोधार
कन्या ने चुम्बन लिया गाल पर
पुनः दिखाया सिनिअरों का द्वार
मेरी सफलता से प्रसन हुए सिनिअर
बन गए मित्र पल मैं दो चार
उल्लास भरा दिन ढल गया शीघ्र ही
देकर मुझको प्रेम अपार